हम बेटिया हम बेटियों को कहने को आज़ादी मिल चुकी है ,
आज हमने शेक्षणिक तौरे पर खुद को विक्सित भी कर लिया है
हमारे पास धन धiन्य की भी कोई कमी नही है लेकिन
फिर भी हमारे पास आज भी वही सामंती समय की बंदिशें हैं
हमे परम्पराओ और रुदिवादिता के नाम पर आज भी बेडियो में जकड़ा जाता है
धर्म या मजहब के नाम पर हमे आज भी बंदिशों में बांध दिया जाता है
हमे स्वाधीनता तो दी जाती है मगर उतनी जितनी समाज चाहता है
क्यों क्या हम लडकियो को खुली हवां में साँस लेने का हक नहीं होता
हमारे अन्दर क्या अरमानो के फूल नही खिलते
क्यों हमारी आज़ादी को तय भी किया जाता है तो हसे पूछे बिना
हमारी ज़िन्दगी का फैसला हम नही हमारे अपने करते हैं हमसे पूछे बिना
हम पंछियों को उडता देखकर देखकर सपने देखते है
कि देश तो आजाद हो गया लेकिन हमे हमारी आज़ादी कब मिलेगी
खाप पर कुछ पुराने संग्रह से
सर्जना चतुर्वेदी
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