SARJANA CHATURVEDI

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Wednesday 29 October 2014

- सािहत्य में अपनी ही िजंदगी का ताना-बाना - रिचर्ड फ्लेंगन

 शख्सियत -    िरचर्ड फ्लेंगन
- सािहत्य में अपनी ही िजंदगी का ताना-बाना - रिचर्ड फ्लेंगन 
 -  संघर्ष के सृजन का सफर

  जब कोई सािहत्यकार अपनी कृित का सृजन करता है तो वह निश्चत ही उस समय यह नहीं जानता िक उसकी कौन सी कृित सर्वश्रेष्ठ होगी या नहीं वह िसर्फ अपनी ओर से सिर्फ प्रयास करता है। ऐसा ही प्रयास करके हाल ही में मैन बुकर पुस्कार जीतकर चर्चा में आए हैं ऑस्ट्रेलिया के रिचर्ड फ्लेंगन। रिचर्ड की यह किताब इसलिए भी खास है क्योंिक यह िकताब एक लेखक ने नहीं बल्कि एक बेटे ने अपने िपता और अन्य कैदियों द्वारा भोगी गई यातनाओं का वर्णन करती हुई है। द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ को अपने जीवन के 12 बरस देकर िलखने वाले तस्मानिया में जन्मे रिचर्ड ने इसे अपने िपता कैदी नंबर 335 को समर्पित किया है। फ्लेंगन के जीवन, साहित्य सृजन का एक सफर।
16 बरस में छोड़ा स्कूल बाद में बने टॉपर 
िरचर्ड के जीवन के संघर्ष का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है िक उनके पिता एक कैदी थे। तस्मानिया के रोजबेरी टाउन में 1961 में जन्मे रिचर्ड अपने माता-पिता की 6 संतानों में से 5वे नंबर की संतान है। रिचर्ड ने भले ही बुकर हासिल िकया हो मगर उनके दादा-दादी गरीब के साथ-साथ अशिक्षित थे लेिकन फ्लेंगन के माता-िपता शिक्षा के महत्व को जानते थे और इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को हर कीमत पर शिक्षा पाने के लिए प्रेरित िकया। फ्लेंगन ने अपने अिभभावक की इस बात के महत्व को समझा और गरीबी के चलते भले ही उन्होंने 16 बरस की उम्र में स्कूल छोड़कर मजदूरी की और तब वह एक बढ़ई बनने की चाह भी रखने लगे थे लेिकन अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते
फ्लेंगन ने 1982 में तस्मानिया यूनिवर्सिटी से फर्स्ट क्लास ऑनर के साथ अपनी ग्रेजुएशन की िडग्री हासिल की। बाद में रॉडेस स्कॉलरशिप लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ लैटर्स डिग्री प्राप्त की।


िजंदगी की कड़वाहट को बुना मीठे शब्दों में
अक्सर कहा जाता है कि अपने जीवन की बुरी यादों को याद नहीं रखना चाहिए लेिकन अपने पिता, अपने परिवार और खुद अपने जीवन की कड़वाहट को खूबसूरत शब्दों में ढालकर रिचर्ड फ्लेंगन ने अपने साहित्य का सृजन िकया है। यह वाकई एक अिद्वतीय िमसाल है। िरचर्ड के भाई और पत्रकार,लेखक मािर्टन फ्लेंगन के मुताबिक रिचर्ड को नदी में तैरना बचपन से ही पसंद था। जब वह 11 साल का था तब मैं और मेरा भाई िटम नदी में तैरते हुए रिचर्ड के नजर न आने को लेकर कई बार परेशान भी हो जाते थे तभी अचानक उसके नन्हें हाथों के नजर आने पर खुश हो जाते थे। लहरों से संघर्ष के इस खेल ने ही िरचर्ड को बहादुरी के साथ संघर्ष करना सिखा दिया था। मार्टिन ने एक ऑस्ट्रेिलयाई अखबार के लिए लिखा है कि 1997 में जब रिचर्ड का पहला नॉवेल डेथ अॉफ अ रिवर गाइड आया और उसे मैंने पढ़ा तो मुझे लगा कि इसके हर िबंदू को मैं जानता हूं, बस िरचर्ड ने उन्हें एक फ्रेम में शब्दों के साथ मढ़ िदया। बतौर मार्टिन इसी तरह 2002 में प्रकाशित हुए फ्लेंगन के नॉवेल गुल्ड बुक ऑफ ए िफश भी उसके बचपन की ही यादों से जुड़ा है क्योंिक वह जहां बचपन में रहता था वह गांव खदान, पहाड़ और नदी से घिरा हुआ था। और बुकर पुरस्कार फ्लेंगन के जिस उपन्यास को िमला है द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ वह डेथ रेल्वे के नाम से पहचाने जाने वाले बर्मा - थाइलैंड पर केिन्द्रत है। हमारे िपता आर्की फ्लेंगन जो एक आम आदमी थे और उनके जैसे लाखों
कैिदयों का संघर्ष इस नॉवेल में फ्लेंगन ने िलखा है। जापानी साम्राज्य के क्रूर अत्याचार और लाखों गुलामों की मदद से 1943में बनाए गए इस रेल मार्ग को लेकर लोगों के संघर्ष को फ्लेंगन ने प्यार और अन्य खूबसूरत घटनाक्रमों के साथ आकार िदया है। मािर्टन के शब्दों में इसलिए जब मैंने इस नॉवेल को एक साल पहले लांच िकया था तभी कहा था िक इसका बढ़ा प्रभाव होगा।
िपता की चाह थी और वह पूरी हुई
यह दुर्लभ सा संयोग ही है कि फ्लेंगन के पिता शायद इस नॉवेल के पूरे होने का ही इंतजार कर रहे थे, क्योंिक फ्लेंगन का यह उपन्यास जिस डेथ रेल्वे पर केिन्द्रत है। फ्लेंग
के पिता उसके निर्माण कार्य में लगे एक कैदी थे। अपने आपको डैथ रेल्वे का बेटा कहने वाले फ्लेंगन जब इस उपन्यास को पूरा कर रहे थे। तभी उनके िपता की याददाश्त धीरे-धीरे बिल्कुल खत्म होने लगी थी और फ्लेंगन को कुछ भी उस दौर का बता पाने में असमर्थ हो गए थे। तब फ्लेंगन ने तस्मािनया जाकर उस दौर के लोगों से मुलाकात की और िस्थति को जाना। फ्लेंगन के मुतािबक इस किताब को िलखते समय कई बार लगा कि यह शायद पूरा नहीं हो पाएगा मगर सिर्फ मेरे पिता को भरोसा था िक मैं इसे पूरा कर लूंगा। उपन्यास लेखन के अंतिम छ: महीने तस्मािनया में ही रहकर उसे पूरा करने वाले फ्लेंगन के 99 वर्षीय िपता जो िक फ्लेंगन की बहन के साथ रहते थे, एक दिन कॉल करके फ्लेंगन से उपन्यास पूरा होने के बारे में पूछा और फ्लेंगन ने बताया िक हां वह पूरा हो गया है और उसे मैंने प्रकाशक को ईमेल कर िदया है, यह जानने के चंद घंटों बाद ही उसी रात फ्लेंगन के पिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
 अिवस्मरणीय है मेरे लिए यह क्षण
 रिचर्ड फ्लेंगन को जब लंदन में मैन बुकर पुरस्कार से सम्मानित करते हुए उन्हें डचेस ऑफ कॉर्नवाल ट्राफी और 50 हजार पाउंड से सम्मानित किया गया तब फ्लेंगन ने कहा िक ऑस्ट्रेलिया में बुकर सम्मान को भाग्यशाली चिकन के तौर पर देखा जाता है और मुझे यह िमल रहा है। यह मेरे लिए गर्व की बात है। रिचर्ड ने कहा कि मैं साहित्य की परंपरा से नहीं आता हूं, मेरे दादा-दादी अनपढ़ थे। मैं एक छोटे से कस्बेे से आता हूं जो पर्वत और बारिश से िघरा हुआ आइसलैंड है। फ्लेंगन ने कहा िक मैंने यह कभी नहीं सोचा था िक लंदन के इस ग्रेंड हॉल में मुझे कभी सम्मानित किया जाएगा। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। इस दौरान फ्लेंगन ने िपता को समर्पित करते हुए इस सम्मान के लिए िनर्णायकों को धन्यवाद िदया। साथ ही 30 सालों से हर पल साथ िनभाने वाली अपनी पत्नी माजदा को लेखन के इस सफर में साथ देने के लिए शुिक्रया अदा िकया और अपने उपन्यास की प्रकाशक निक्की िक्रस्टर को भी धन्यवाद दिया।
तस्मानिया के पहले और ऑस्ट्रेिलया के तीसरे बुकर
  सम्मान
2014 मैन बुक प्राइज, िब्रटेन
2011 तस्मािनया बुक प्राइज, वॉनि्टंग
2009 क्वीनसलैंड प्रीमियर लिटररी अवार्ड एंड फिक्शन वॉनि्टंग
2009 मिल्स फ्रेंकलिन अवॉर्ड, ऑस्ट्रेिलया वॉनि्टंग शॉर्टलिस्ट
2008 वेस्टर्न ऑस्ट्रेिलयन प्रीमियर लिटररी अवॉर्ड फॉर फिक्शन वॉनि्टंग 
2002 कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज - गुल्ड बुक ऑफ फिश- अ नॉवेल इन ट्वेलव फिश
कृितयां 
2013 द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ
2009 वॉनि‌‌्टंग 
2007 अननोन टेरेिरस्ट
2002 गुल्ड बुक ऑफ ए फिश-अ नॉवेल इन ट्वेलव फिश
1998 द साउंड ऑफ वन हेंड क्लेपिंग
1997 डेथ अॉफ अ रिवर गाइड

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