SARJANA CHATURVEDI

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Tuesday 19 September 2017

जार्ज बनार्ड शा नाटककार संघर्ष के साथ सफलता



आप कुछ देखते है, तो कहते हैं क्यों? लेकिन मैं असंभव से सपने देखता हूं और कहता हूं क्योंं नहीं? इस तरह के कई प्रेरक विचारों का सृजन करने वाले और २०वीं सदी के महानतम नाटककार तथा लघुकथा लेखक जार्ज बर्नाड शा की लेखनी के तो वाकई लोग कायल हैं, लेकिन बर्नाड की जिंदगी भी किसी प्रेरक कथा से कम नहीं लगती है। स्कूली शिक्षा भी गरीबी और समस्याओं के साथ पूरी करने वाले शा की यह साहित्य के प्रति लगन ही थी कि उन्हें अंग्रेजी साहित्य के शेक्सपियर के बाद दूसरे सबसे बड़े नाटककार के रूप में जाना जाता है। १९२५ में साहित्य के लिए सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार और १९३८ में फिल्म पिगमेलियन के लिए ऑस्कर अवार्ड पाने वाले शा इकलौते शख्स हैं, जिन्हें इन दोनों सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 
एक परिचय 
जन्म - २६ जुलाई डबलिन आयरलैंड 
मृत्यु - २ नवंबर १९५० सेंट लॉरेंस इंग्लैंड  नााटककार, लेखकर, आलोचक 
प्रमुख सम्मान - नोबेल पुरस्कार १९२५ 
ऑस्कर अवार्ड १९३८ 
चर्चित कृतियां - पिगमेलियन, हार्टब्रेक हाउस, मेजर बारबरा, मेन एंड सुपरमैन, सेंट जॉन आदि। 
असफलता से नहीं मानें हार
कोई युवा जब नौकरी की तलाश में जाता है और नहीं मिलती तो वह भी निराश हो जाता है जबकि दुनिया की अधिकांश बड़ी शख्सियतों ने जिंदगी के शुरूआती दौर में असफलताओं का सामना किया है। साहित्यकार-नाटककार जार्ज बर्नार्ड को भी जीवन के प्रारंभिक दौर में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। शुरूआत में एक असफल मर्चेन्ट व्यापारी, सिविल सर्वेन्ट और क्लर्क  का काम उन्होंने किया था। एक बार जब शा से किसी ने साहित्य को अपना पेशा चुनने के बारे में पूछा तो उन्होंने अपनी चिर-परिचित शैली में कहा है जीविका के लिए साहित्य को अपनाने का मुख्य कारण यह था कि लेखक को पाठक देखते नहीं हैं इसलिए उसे अच्छी पोशाक की जरूरत नहीं होती। व्यापारी, डॉक्टर, वकील, या कलाकार बनने के लिए मुझे साफ कपड़े पहनने पड़ते और अपने घुटने और कोहनियों से काम लेना छोडऩा पड़ता। साहित्य ही एक ऐसा सभ्य पेशा है जिसकी अपनी कोई पोशाक नहीं है, इसीलिए मैंने इस पेशे को चुना है। फटे जूते, छेद वाला पैजामा, घिस-घिस कर काले से हारा-भूरा हो गया ओवरकोट, बेतरतीब तराशा गया कॉलर, और बेडौल हो चुका पुराना टॉप यही उनकी पोशाक थी। बहुत लंबे समय तक शा लिखते गए लेकिन उनकी किसी भी रचना को प्रकाशन योग्य नहीं समझा गया। किसी प्रकाशक ने कुछ पुराने ब्लॉक खरीद कर स्कूलों में ईनाम देने के लिए कुछ किताबें तैयार करवाईं। उसने शा से कहा कि वे ब्लॉकों के नीचे छापने के लिए कुछ कविताएं लिख दें। शा को इसमें धन प्राप्ति की कोई उम्मीद नहीं थी। उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ जब प्रकाशक ने कविताओं के लिए धन्यवाद पत्र के साथ पांच शिलिंग भी भेजे। अपने साहित्यिक जीवन के प्रारंभिक नौ वर्षों में लिखने की कमाई से वे केवल छ: पौंड ही प्राप्त कर सके, लेकिन शा ने लिखना नहीं छोड़ा और वे बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध अंग्रेजी नाटककार बन गए। 

नहीं स्वीकार की नोबेल पुरस्कार की राशि 
जब सन १९२५ में जार्ज बर्नाड शा को नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई। तो शा ने पुरस्कार तो स्वीकार कर लिया, किंतु पुरस्कार की रकम लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा - अब मेरे पास .गुजारे लायक काफी धन है, इनाम की रकम स्वीडन के गरीब लेखकों को दे दी जाए। 

जार्ज बर्नार्ड शा के चेक
एक बार जार्ज बर्नार्ड शा ने एक चित्रकार को अपना चित्र बनाने को कहा और वायदा किया कि पसंद आने पर पारिश्रमिक के रूप में एक सौ पौंड देंगे। चित्रकार ने बड़ी मेहनत और लगन से उनका बहुत ही सुंदर चित्र बनाया। शा को वह चित्र बहुत पसंद आया और उन्होंने वायदे के अनुसार चित्रकार को बीस-बीस पौंड के पांच चेक एक प्रशंसा पत्र के साथ भेज दिए। चेक तथा पत्र पाने पर चित्रकार को समझ नहीं आया कि शा ने एक चेक की जगह पांच-पांच चेक क्यों भेजे। अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए वह शा से मिला और पूछा,सर पांच-पांच चेक काटने की क्या जरूरत थी, सौ पौंड का एक ही चेक काफी होता। शा ने पूछा, क्या तुमने चेक भुना लिए हैं?नहीं, चित्रकार ने जवाब दिया। शा बोले, अच्छा किया। तुम चेक भुनाना भी मत। इससे तुम्हें भी फायदा होगा और मुझे भी। चित्रकार बोला, मैं कुछ समझा नहीं सर। शा मुस्कुराए और बोले, मैं अपने प्रशंसकों से अपने एक हस्ताक्षर के तीस पौंड लेता हूं। तुम पांचों चेक मेरे प्रशंसकों को बेच दो। इससे तुम्हें एक सौ के बदले डेढ सौ पौंड मिल जाएंगे। इस तरह तुम पचास पौंड ज्यादा कमा लोगे। मेरा फायदा तो समझ में आया पर इससे आप को कैसे फायदा होगा? चित्रकार ने पूछा। ऐसा है कि मेरे प्रशंसक मेरे हस्ताक्षरों को बेचते नहीं हैं। वे उन्हें फ्रेम में मढ़वा कर अपने पास संजोए रखते हैं। इस तरह मेरे भी एक सौ पौंड बच जाएंगे। शा ने हंसते हुए जवाब दिया।

नहीं बनाई कभी दाढ़ी 
जॉर्ज बर्नार्ड शा को एक इलैक्ट्रिक शेविंग मशीन बनाने वाले ने अपने इलैक्ट्रिक रेजर का विज्ञापन करने के लिए संपर्क किया। वह चाहता था कि विज्ञापन में शा अपनी दाढ़ी साफ करते हुए दिखें। दाढ़ी शा की शख्सियत से जुड़ चुकी थी और उनकी खास पहचान बन चुकी थी। शा ने मशीन निर्माता को बताया कि उनके पिता ने भी हमेशा दाढ़ी रखी और इसके पीछे एक बहुत विशेष कारण था। शा ने बताया कि , मैं उस समय लगभग पांच साल का था शा ने कहा और मैं अपने पिता के पास खडा हुआ था। वे दाढ़ी बना रहे थे। मैंने उनसे पूछा,डैडी, आप दाढ़ी क्यों बनाते हैं?, मेरे पिता ने कुछ पलों के लिए मेरी ओर देखा और अपना रेजर खिड़की से बाहर फेंकते हुए वे बोले, बेटा, दाढ़ी बनाने की वास्तव में कोई जरूरत नहीं होती, और उस दिन के बाद उन्होंने कभी दाढ़ी नहीं बनाई। 

तो कोई और पेशा चुनता 
अपने नब्बे वें जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में शा को स्कॉट्लैंड यार्ड पुलिस के मशहूर जासूस फेबियन ने सुझाव दिया कि उस मौके के उपलक्ष्य में शा की उंगलियों की छाप लेनी चाहिए ताकि वह हमेशा-हमेशा के लिए संरक्षित हो जाएं। शा की उंगलियों की छाप सबके सामने ली गई लेकिन वह आश्चर्यजनक रूप से बहुत अस्पष्ट आई। यह देखकर शा ने वहां मौजूद लोगों से चुटकी लेते हुए कहा यदि मुझे यह पहले पता होता तो मैंने कोई और पेशा अख्तियार किया होता। 

 किस चिडिय़ा का नाम है 
ब्रौडवे थियेटर में प्रसिद्ध नाटककार सर सेड्रिक हार्डविक 'सीजर एंड क्लियोपेट्राÓ नाटक का निर्देशन कर रहे थे शा भी वहां उपस्थित थे। सेड्रिक अपने किशोरवय पुत्र को शा से मिलाने ले गए। जब वे विदा लेने लगे तो शा ने सेड्रिक के पुत्र से कहा लड़के, एक दिन तुम अपने पोते-पोतियों को यह बताओगे कि तुमने जॉर्ज बर्नार्ड शा को देखा हुआ है और जरा सा ठहरकर शा मुस्कुराते हुए बोले और वे कहेंगे 'ये किस चिडिय़ा का नाम है!Ó

आप सिर्फ कला में रूचि रखते हैं 
एमजीएम स्टूडियो के मालिक सैमुअल गोल्डविन बर्नार्ड शा के कई नाटकों पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीदना चाहते थे इससे जुड़ी राशि पर लंबी बहस होने के बाद शा ने अंतत: गोल्डविन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने गोल्डविन से बड़े तल्ख़ अंदाज में कहा हमारे बीच कोई समझौता नहीं हो सकता मिस्टर गोल्डविन क्योंकि आप सिर्फ कला में रूचि रखते हैं और मैं सिर्फ पैसे में।